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हिंदी उर्दू ग़ज़ल
Labon Ke Gulaab Maange Hai
Rukhon Ke Chaand Labon Ke Gulaab Maange Hai,
Badan Ki Pyaas Badan Ki Sharab Maange Hai.
Main Kitne Lamhe Na Jaane Kahan Ganwa Aaya,
Teri Nigaah Toh Saara Hisaab Maange Hai.
Main Kis Se Puchhne Jaaun Ke Aaj Har Koi,
Mere Sawal Ka Mujhse Jawaab Maange Hai.
Dil-e-Tabaah Ka Yeh Hausla Bhi Kya Kam Hai,
Har Ek Dard Se Jeene Ki Taab Maange Hai.
Bajaa Ke Waza-e-Haya Bhi Hai Ek Cheej Magar,
Nishaat-e-Dil Tujhe Be-Hizaab Maange Hai.
मैं कितने लम्हे न जाने कहाँ गँवा आया,
तेरी निगाह तो सारा हिसाब माँगे है।
मैं किस से पूछने जाऊं कि आज हर कोई,
मेरे सवाल का मुझसे जवाब माँगे है।
दिल-ए-तबाह का यह हौसला भी क्या कम है,
हर एक दर्द से जीने की ताब माँगे है।
बजा कि वज़ा-ए-हया भी है एक चीज़ मगर,
निशात-ए-दिल तुझे बे-हिजाब माँगे है।
~जाँ निसार अख़्तर
Justjoo Jiski Thi
Justjoo Jiski Thi Usko Toh Na Paya Humne,
Iss Bahaane Magar Dekh Li Duniya Humne.
Tujhko Ruswa Na Kiya Khud Bhi Pashemaan Na Huye,
Ishq Ki Rasm Ko Iss Tarah Nibhaya Humne.
Kab Mili Thi Kahan Bichhadi Thi Humein Yaad Nahi,
Zindagi Tujh Ko To Bas Khwab Mein Dekha Humne.
Ai Adaa Aur Sunaye Bhi Toh Kya Haal Apna,
Umra Ka Lamba Safar Tay Kiya Tanha Humne.
जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने,
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने।
तुझको रुसवा न किया खुद भी पशेमाँ न हुये,
इश्क़ की रस्म को इस तरह से निभाया हमने।
कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी हमें याद नहीं,
ज़िन्दगी तुझ को तो बस ख्वाब में देखा हमने।
शहरयारऐ अदा और सुनाये भी तो क्या हाल अपना,
उम्र का लम्बा सफ़र तय किया तन्हा हमने।
Shahar Mein Bacha Hi Kya Hai
अब तेरे शहर में रहने को बचा ही क्या है,
जुदाई सह ली तो सहने को बचा ही क्या है।
सब अजनबी हैं, तेरे नाम से जाने मुझको,
पढ़ने वाला नहीं, लिखने को बचा ही क्या है।
ये भी सच है कि मेरा नाम आशिकों में नहीं,
बनके दीवाना तेरा, उछलने में रखा ही क्या है।
तू ही तू था कभी, अब मैं भी ना रहा,
वो जलवा भी नहीं मिटने को बचा ही क्या है।
मरना बाकी है तो, मर भी जायेंगे एक दिन,
सुनने बाला नहीं, कहने को बचा ही क्या है।
~राजेंद्र कुमार
Tera Mil Jaana
वो हर रोज गुजरकर तेरी गली से जाना याद आता है,
खुदा ना खास्ता वो तेरा मिल जाना याद आता है।
यूँ ही गुजर गया वो जमाना तुम्हारे इन्तजार का,
आज भी मुझे वो गुजरा जमाना याद आता है।
सुना है कि आज भी हमारी बातें करते है लोग,
आज भी सबको वो अपना अफसाना याद आता है।
तुम भी मुस्कुराती हो बेवजह अक्सर आईने में,
सुना है तुमको भी अपना ये दीवाना याद आता है।
तब तुमसे मिला करते थे छुप छुप के हम,
हर आहट से तेरा वो घबराना याद आता है।
मैं शुक्रगुजार हूँ उन सर्द हवाओं का आज भी,
वो ठंड में हम दोनों का लिपट जाना याद आता है।
आज भी जब मैं मुस्कुराता हूँ कभी आईने में,
मुझे देखकर तेरा वो मुस्कुराना याद आता है।
बस यादें ही रह गयी और कुछ न बचा यहाँ,
कभी तेरा हँसाना कभी सताना याद आता है।
~हिमांकर अजनबी
Yoon Aankhon Se Baatein
हमें प्यार की भाषा नहीं आती अजनबी,
यूँ आँखों से ये बातें बनाया न कीजिए।
ज़रा नादान हैं हम अभी इश्क में सनम,
यूँ सबक इश्क़ के हमें पढ़ाया न कीजिए।
न रोका कीजिए हमें राहों में इस तरह,
यूँ पकड़ के कलाई हमें सताया न कीजिए।
पत्थरों के हैं मौसम काँच के हैं रास्ते,
ख़्वाबों के इस शहर में ले जाया न कीजिए।
हम तुम्हारे हैं तो हो जाएंगे तुम्हारे,
यूँ मोहब्बत को सरे-आम दिखाया न कीजिए।
न कीजिए तारीफ हर बात में हमारी,
महफ़िलों में ग़ज़लें यूँ गाया न कीजिए।
होता है जिक्र साथ जो तुम्हारा और मेरा
बेहताशा इस कदर मुस्कुराया न कीजिए।
सुना है पूछते सब आपसे नाम हमारा,
गुजारिश है साहिब किसी से बताया न कीजिए।
हम डरते हैं बदनाम हो जाने से जरा,
मगर गुमनाम भी हमें बताया न कीजिए।
हिमांकर अजनबी
Sirf Deewaron Ka Na Ho
सिर्फ दीवारों का ना हो घर कोई,
चलो ढूंढते है नया शहर कोई।
फिसलती जाती है रेत पैरों तले,
इम्तहाँ ले रहा है समंदर कोई।
काँटों के साथ भी फूल मुस्कुराते है,
मुझको भी सिखा दे ये हुनर कोई।
लोग अच्छे है फिर भी फासला रखना,
मीठा भी हो सकता है जहर कोई।
परिंदे खुद ही छू लेते हैं आसमाँ,
नहीं देता हैं उन्हें पर कोई।
हो गया हैं आसमाँ कितना खाली,
लगता हैं गिर गया हैं शज़र कोई।
हर्फ़ ज़िन्दगी के लिखना तो इस तरह,
पलटे बिना ही पन्ने पढ़ ले हर कोई।
कब तक बुलाते रहेंगे ये रस्ते मुझे,
ख़त्म क्यों नहीं होता सफर कोई।
~राकेश कुशवाहा
Dil Dukhana Nahi Bhoole
दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले,
हम अपने बुजुर्गों का ज़माना नहीं भूले।
तुम आँखों की बरसात बचाये हुये रखना,
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले।
ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने,
हम आप की तस्वीर बनाना नहीं भूले।
इक ऊम्र हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ,
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नहीं भूले।
~सागर आज़मी
Tumhein Mangenge Khuda Se
सुनते हैं कि मिल जाती है हर चीज दुआ से,
इक रोज तुम्हें माँग के देखेंगे ख़ुदा से।
तुम सामने होते हो तो है कैफ की बारिश,
वो दिन भी थे जब आग बरसती थी घटा से।
ऐ दिल तू उन्हें देख के कुछ ऐसे तड़पना,
आ जाए हँसी उन को जो बैठे हैं खफ़ा से।
दुनिया भी मिली है गम-ए-दुनिया भी मिला है,
वो क्यूँ नहीं मिलता जिसे माँगा था ख़ुदा से।
~राणा अकबराबादी