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हिंदी उर्दू ग़ज़ल
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उदासी के चेहरे
उदासी के चेहरे पढ़ मत करो,
ग़ज़ल आँसुओं से लिखा मत करो।
बहरहाल, इन में आग ही आग है,
चिरागों को ऐसे छुआ मत करो।
दुआ आँसुओं में खिला फूल है,
किसी के लिए बद्दुआ मत करो।
तुम्हें लोग कहने लगेंगे बेवफा,
ज़माने से इतनी वफ़ा मत करो।
खुदा के लिए चांदनी रात में,
अकेले अकेले फिरा मत करो।
Udaasi Ke Chehre Padha Mat Karo,
Ghazal Aaansuon Se Likha Mat Karo.
Baharhaal Inn Mein Aag Hi Aag Hai,
Chiraagon Ko Aise Chhua Mat Karo.
Duaa Aansuon Mein Khila Phool Hai,
Kisi Ke Liye Baddua Mat Karo.
Tumhe Log Kahne Lagenge Bewafa,
Zamane Se Itni Wafa Mat Karo.
Khuda Ke Liye Chandani Raat Mein,
Akele Akele Fira Mat Karo.
मिट गई दुनिया हमारी
मिट गई दुनिया हमारी आसरा कोई नहीं,
बाँट ली खुशियॉ सभी ने ग़म बाँटता कोई नहीं।
बीच अपनों के भी रहकर लग रहा है ये मुझे,
अजनबी हूँ इस शहर में जानता कोई नहीं।
कैसे रिश्तेदार हैं ये कैसी है ये दोस्ती,
दौरे मुश्किल में हमारे काम आता कोई नहीं।
चैन दिन को है न रातों को सुकूं पाते हैं हम,
दर्द से फिर भी हमारे आशना कोई नहीं।
यूं तो सब हमदर्द हैं और हमनवा भी हैं मगर,
साथ गुरबत में जो दे दे ऐसा मेरा कोई नहीं।
मंजिले-राहत प पहुंचू किस तरह तू ही बता,
रहगुज़र है और मैं हूँ कारवॉ कोई नहीं।
जा के किसको हम सुनाए हाले-दिल तू ही बता,
सुनने वाला ग़म की मेरे दास्तॉ कोई नहीं।
ग़म के साये में है गुज़री उम्र भर ये ज़िंदगी,
दर्द की मेरे खुदाया क्या दवा कोई नहीं।
खा रहा है ठोकरे जाफर तन्हा परदेस में,
रहबरी करने को मेरी राहनुमा कोई नहीं।
तेरे कूंचे पे आकर भी
तेरे कूंचे पे आकर भी नहीं अब दिल बहलता है,
यहाँ भी है धुआँ फैला, वहाँ भी कोई जलता है।
परेशां इस ज़माने में न पूछो कौन है कितना,
कभी गिरता, कभी उठता, कभी इन्सां संभलता है।
मोहब्बत आशिक़ी प्यारे लगी कब की न कुछ पूछो,
इनायत उसकी है जिस पर उसे यह दिल से मिलता है।
कोई काग़ज बना कोरा न रंग पाया अधर अपने,
न उसने पोखरे देखे जहाँ पंकज भी खिलता है।
सामने की जगी चाहत पसारो अपनी बाहें फिर,
तुम्हे यह याद तो होगा ये दिल क्यूँ कर मचलता है।
सभी आशिक़ समन्दर के, कोई अंदर, कोई बाहर,
किसे न है कब कैसे इसे सागर समझता है।
~ विजय नाथ झा
बिछड़ कर फिर मिले
बिछड़ कर फिर मिले जो हाल पूछेंगे,
मिरे बिन कैसे गुज़रे साल पूछेंगे।
नहीं मुझ सा कोई आशिक़ ज़माने में,
मुझे मालूम है फ़िलहाल पूछेंगे।
अदालत में है ये पेशा वकीलों का,
सवालों से ही हाल-ओ-चाल पूछेंगे।
दीपक दूबेयही रस्ता अगर संसद भवन का है,
चलाएं कब- तलक हड़ताल पूछेंगे।
Raaste Badal Daale
जो मिला मुसाफ़िर वो रास्ते बदल डाले,
दो कदम पे थी मंज़िल फ़ासले बदल डाले।
आसमाँ को छूने की कूवतें जो रखता था,
आज है वो बिखरा सा हौंसले बदल डाले।
शान से मैं चलता था कोई शाह कि तरह,
आ गया हूँ दर दर पे क़ाफ़िले बदल डाले।
फूल बनके वो हमको दे गया चुभन इतनी,
काँटों से है दोस्ती अब आसरे बदल डाले।
इश्क़ ही खुदा है सुन के थी आरज़ू आई,
खूब तुम खुदा निकले वाक़िये बदल डाले।
Laaun Kahan Se
महकता वो चमन लाऊँ कहाँ से,
जुदा जिसका तसव्वुर हो ख़िज़ाँ से।
कभी पूछा है तुमने कहकशाँ से,
हुए गुम क्यों सितारे आसमाँ से।
न जाने क्या मिलाया था नज़र में,
क़दम हिल भी नहीं पाए वहाँ से।
सँभलने के लिए कुछ वक़्त तो दो,
अभी उतरा ही है वो आसमाँ से।
किसी सूरत बहार आए गुलों पर,
उड़ी है इनकी रंगत ही ख़िज़ाँ से।
हटा दे तीरगी जो मेरे दिल की,
मैं ऐसी रोशनी लाऊँ कहाँ से।
अज़ाब-ए-जीस्त रुसवाई ख़मोशी,
मिले 'निर्मल' को तुहफ़े महरबां से।
~रचना निर्मल
Wo Chirag Jo Raat Bhar
वो चराग़ जो रात भर सफ़र में होगा,
नहीं सोचता क्या उसका सहर में होगा।
अज़ब चुप सी लगी है तमाम चेहरों पे,
न जाने कौन सा हादसा अब शहर में होगा।
परिंदे को चहकने में अभी वक़्त लगेगा,
कफ़स तो टूट गया है अभी वो डर में होगा।
मेरे घर का हर कोना जवाब माँगता है,
इस दफा इम्तिहान तेरे घर में होगा।
यूँ ही नहीं वो जिगर के पार उतर गया,
कुछ तो इज़्तराब उस खंज़र में होगा।
देखना सुरंग के उस पार फिर पहुँच जायेगा,
इक क़तरा रौशनी का फिर नज़र में होगा।
~ राकेश कुशवाहा
Pee Chuke Aankhon Se
पी चुके आँखों से बहुत अब और शराब रहने दो,
उसके चेहरे की बात करते हैं, जिक्र-ए-गुलाब रहने दो।
फजा ने गिरा दिये पत्ते उनके जाने की राह पर,
उसे पतझड़ तुम कहो मुझें बहार कहने दो।
खूबसूरती बला की उसमें पर बला से कम नहीं,
खौफ कयामत का हैं चेहरे पे हिसाब रहने दो।
लफ्ज लिखे जो स्याही रात में अहसास की कलम से,
दिखते,मिटते क्यूँ नही ये अब ये सवाल रहने दो।
मत उछालो काँच के खिलौनों को टूट जाऐगा,
दिलों से खेलने वालो मत लो जवाब रहने दो।
~ बिपिन मौर्या