हिंदी उर्दू ग़ज़ल
Wo Chirag Jo Raat Bhar...
वो चराग़ जो रात भर सफ़र में होगा,
नहीं सोचता क्या उसका सहर में होगा।
अज़ब चुप सी लगी है तमाम चेहरों पे,
न जाने कौन सा हादसा अब शहर में होगा।
परिंदे को चहकने में अभी वक़्त लगेगा,
कफ़स तो टूट गया है अभी वो डर में होगा।
मेरे घर का हर कोना जवाब माँगता है,
इस दफा इम्तिहान तेरे घर में होगा।
यूँ ही नहीं वो जिगर के पार उतर गया,
कुछ तो इज़्तराब उस खंज़र में होगा।
देखना सुरंग के उस पार फिर पहुँच जायेगा,
इक क़तरा रौशनी का फिर नज़र में होगा।
~ राकेश कुशवाहा
Pee Chuke Aankhon Se...
पी चुके आँखों से बहुत अब और शराब रहने दो,
उसके चेहरे की बात करते हैं, जिक्र-ए-गुलाब रहने दो।
फजा ने गिरा दिये पत्ते उनके जाने की राह पर,
उसे पतझड़ तुम कहो मुझें बहार कहने दो।
खूबसूरती बला की उसमें पर बला से कम नहीं,
खौफ कयामत का हैं चेहरे पे हिसाब रहने दो।
लफ्ज लिखे जो स्याही रात में अहसास की कलम से,
दिखते,मिटते क्यूँ नही ये अब ये सवाल रहने दो।
मत उछालो काँच के खिलौनों को टूट जाऐगा ,
दिलों से खेलने वालो मत लो जवाब रहने दो।
~ बिपिन मौर्या
Aakhir Saanson Ka Saath...
आखिर सांसों का साथ, कब तक रहेगा,
किसी का हाथों में हाथ, कब तक रहेगा।
बस यूं ही डूबते रहेंगे चाँद और सूरज तो,
आखिर रोशनी का साथ, कब तक रहेगा।
अगर जीना है तो चलना पड़ेगा अकेले ही,
आखिर रहबरों का साथ, कब तक रहेगा।
न करिये काम ऐसे कि डूब जाये नाम ही,
आखिर सौहरतों का साथ, कब तक रहेगा।
कभी तो ज़रूर महकेगा उल्फत का चमन,
आखिर ख़िज़ाओं का साथ, कब तक रहेगा।
तुम भी खोज लो मिश्र ख़ुशी के अल्फ़ाज़,
आखिर रोने-धोने का साथ, कब तक रहेगा।
Bekaar Apne Waqt Ko...
बेकार अपने वक़्त को, गंवाया मत करिये
हर जगह अपनी टांग, फंसाया मत करिये।
कोई भी किसी से कम नहीं है आज कल,
बेसबब किसी पे धौंस, जमाया मत करिये।
ख़ुराफ़ातों से न मिला है न मिलेगा कुछ भी,
यूं हर वक़्त टेढ़ी चाल, दिखाया मत करिये।
ये ज़िन्दगी है यारो इसे मोहब्बत से जीयो,
इसमें नफ़रतों का पानी, चढ़ाया मत करिये।
गर उलझन है अपनों से तो सुलझाइये खुद,
मगर शोर घर से बाहर, मचाया मत करिये।
अब तो न बचा है कोई भी भरोसे के लायक,
किसी को दिल की बात, बताया मत करिये।
ज़िन्दगी का मसला कोई खेल नहीं है मिश्र,
कभी बेवजह इसको, उलझाया मत करिये।
Kya Milega...
किसी के ज़ख्मों को, दुखा कर क्या मिलेगा,
किसी के सपनों को, मिटा कर क्या मिलेगा।
यारा भर चुके हो जब अँधेरे दिलों के अंदर,
तो फिर इन दीयों को, जला कर क्या मिलेगा।
खो दिया जब तुमने ईमान ही अपना दोस्त,
फिर यूं झूठी कहानी, सुना कर क्या मिलेगा।
बसा रखा है जब मैल ही मैल अपने दिल में,
तो फिर मोहब्बतों को, जता कर क्या मिलेगा।
जो खुद ही घिरे हैं अपने कुकर्मों के भंवर में,
तो भला हाथ ऐसों को, थमा कर क्या मिलेगा।
ख़ुदा तो जानता है हर किसी को अंदर तक,
तो फिर उससे भी, मुंह छुपा कर क्या मिलेगा।
यारो न कर सको किसी का भला तो अच्छा,
पर किसी को यूं बकरा, बना कर क्या मिलेगा।
छोड़ दो ये दुनिया बस यही बेहतर है मिश्र,
यूं ही अकारण दिल को, सता कर क्या मिलेगा।